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Annual Report 2015-16

प्रतिवेदन वर्ष 2015-16

अकादमी द्वारा वर्ष 2015-16 में संचालित एवं सम्पन्न की गई गतिविधियाँ/प्रवर्तियाँ तथा उपलब्धियाँ निम्नानुसार उल्लेखनीय है –

  • ग्रन्थालय एवं प्रलेखन केन्द्र का संचालन

ग्रन्थालय – अकादमी द्वारा संचालित ग्रन्थालय के अन्तर्गतगत वर्ष 2016 तक 3700 पुस्तकें संग्रहित हो चुकी है जो कि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है । पत्र-पत्रिकाऐं – अकादमी वाचनालय/रिडिंग रूम के अन्तर्गत वर्ष 2015-16 में  नियमित रूप से 28 पत्र-पत्रिकाऐं उपलब्ध करवाई गई । उपलब्ध ग्रन्थो, पत्र-पत्रिकाओं, सन्दर्भ सामग्री एवं सुविधाओं का देश-प्रदेश के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध एवं स्थानीय शोधार्थियों/लेखकों एवं सुधी पाठकों ने लाभ प्राप्त किया है ।

प्रलेखन – पत्र-पत्रिकाओं, जर्नल्स तथा शासकीय योजनाओं/सूचना स्रोतों से अनुसूचित जाति, जनजाति एवं समाज के कमजोर वर्गों के विकास/उन्नयन संबंधी आलेख, समाचार, अध्ययन निष्कर्ष, सर्वेक्षण रपट आदि वर्गीकृत जानकारी का प्रलेखन/दस्तावेजीकरण किया गया है ।

  • शोध पत्रिका (जर्नल) का प्रकाशन

वर्ष 2015-2016 में अकादमी की त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘‘पूर्वदेवा’’ के अंक 81-82 एवं 83-84 का

नियमित सम्पादन / प्रकाशन किया गया है। ‘‘पूर्वदेवा’’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक डा. हरिमोहन धवन एवं प्रकाशक श्री पी. सी. बैरवा है । यह उल्लेखनीय है कि पूर्वदेवा पत्रिका का सम्पादन एवं प्रकाशन पूर्णतः अवैतनिक एवं अव्यावसायिक है ।

  • सामाजिक विज्ञान शोध केन्द्र का संचालन

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से अकादमी को सामाजिक विज्ञान शोध केन्द्र के रूप में समाजशास्त्र एवं इतिहास विषय में मान्यता/सम्बद्धता प्राप्त है । शोध केन्द में आवश्यक शोध सुविधाऐं प्रदान की जाकर शोधार्थीयों को संकाय सदस्यों द्वारा सतत् मार्गदर्शन प्रदान किया गया  है । वर्ष में सामाजिक विज्ञान संकाय के अन्तर्गत समाजशास्त्र विषय में पी.एच.डी. उपाधि/शोध कार्य हेतु कई विषयों पर शोधार्थी के रूप में पंजीयन कराया गया है ।

संकाय- शोध केन्द्र संकाय सदस्य (1) डॉ. जे.एन. दुबे, शोध निदेशक इतिहास, (2) डॉ.एन. एल. शर्मा, शोध निदेशक समाजशास्त्र (3) डॉ. एच. एम. बरूआ, शोध निदेशक समाजशास्त्र मानद् रूप से कार्यरत् है । जिनके नेतृत्व में शोध केन्द्र की गतिविधियाँ संचालित है ।

  • राष्ट्रीय संगोष्ठी/जयन्ती-काव्यगोष्ठी/परिचर्चा/विशिष्ट व्याख्यान आयोजन

(1) डॉ. अम्बेडकर जयन्ती पर विचार गोष्ठी का आयोजन- 14 अप्रेल, 2015 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती दिवस पर स्थानीय टावर चैक पर स्थित डाॅ. अम्बेडकर प्रतीमा पर पुष्पांजली अर्पित की गई तत्पश्चात अकादमी सभाकक्ष में आयोजित विचार गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए डॉ.शैलेन्द्र पाराशर, अध्यक्ष- डॉ.अम्बेडकर पीठ, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहा कि 20 वीं सदी में बाबा साहब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का अवतरण हुआ और उन्होंने अपने स्तर पर समता मूलक समाज की हिमायत की । पर बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने तो दलितों के अन्दर अपने अधिकरों की ईच्छा शक्ति ही पैदा नहीं कि, बल्कि अपने सदियों से खोये अधिकरों की प्राप्ति कैसे हो सकती है, इसके लिए संघर्ष का रास्ता भी दिखाया । उन्होंनें देश की सत्ता और सम्पदा में दलितों की बराबरी की मांग करके दलितों में ‘राजसत्ता’ के लिए ‘भूख’ पैदा की । उन्होंने दलित हितों की ओर अंग्रेजी हुकुमत का ध्यान आकर्षित ही नहीं किया, बल्कि समाज और सत्ता में उन्हें सवर्णों के समान अधिकार देने के लिए बाध्य किया।

इस अवसर पर अकादमी अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन धवन ने कहा कि बाबा साहब ने दलितों के उत्थान के लिए मूलमंत्र दिया – ‘शिक्षित बनो, संगठित हों और संघर्ष करो ।’ आज उनके इस मूलमंत्र को अपना कर दलित शिक्षित हो रहे हैं, संगठित हो रहे हैं और संघर्षरत् है । देश की सत्ता और सम्पदा में बराबर की भागीदारी की ओर अग्रसर हैं । वे अपने मानवीय अधिकारों के लिए सचेत हो रहे हैं ।  अकादमी सचिव श्री पी. सी. बैरवा  ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर ने अपना सारा जीवन दलित-शोषित-पीड़ितों के उत्थान में बितया वे समाज में व्याप्त ऊॅंच-नींच, भेद-भाव को समूल नष्ट कर सामजिक समरसता को स्थापित करना चाहते थे ।

(2) संत कबीर जयन्ती: काव्यगोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन

संत कबीर जयन्ती दिवस 2 जून, 2015 को पर डॉ. डी.डी. बेदिया अध्यक्ष-पण्डित जवाहरलाल नेहरू व्यावसायिक प्रबन्ध संस्थान, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि महात्मा कबीर का समय भारतीय इतिहास में अत्यन्त अशान्ति का समय माना जाता है । चारों ओर विनाश और निराशा का ही ताण्डव हो रहा था । कावय रचना राजदरबारों से हटकर झोपडियों मठों और मंदिरों में होने लगी । कबीर इसी परिस्थिति की उपज है । अकादमी सचिव  श्री पी. सी. बैरवा  ने प्रतिपादि किया कि ‘‘कबीर धार्मिक रूढ़ियों, सामाजिक विषमताओं, कट्टरताओं और संकुचित विचारों का विरोध किया । उनका विद्रोही स्वर उनकी रचनाओं में उभरा और वे धार्मिक-सामाजिक जागरण के अग्रणी विचारक प्रवक्ता बने । धर्म निरपेक्षता, सामाजिक बराबरी, सामाजिक एकता की बात जो कबीर कह गए वह आज भी प्रासंगिक है ।

(3) महात्मा गांधी जयंती: विचार गोष्ठी का आयोजन

गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर, 2015 को डॉ. एच.एम. बरूआ  पूर्व आचार्य-समाजशास्त्र शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि आज के वैचारिक परिदृश्य में कई चीजें अस्पष्ट और अस्थिर सी लगती है । स्वाभाविक ही है कि ऐसे समय में अपने कर्म और विचारों को दृढ़ता, दिशा और गति देने के लिए मानस मंथन किया जाए । महात्मा गांधी भारतीय दलित आंदोलन के ऐसे महत्वपूर्ण स्तम्भ रहे हैं जो यदि अपनी भूमिका से अदृश्य होते तो दलित और शोषित वर्ग की स्थिति कितनी भयावह होती, इसकी परिकल्पना सहज ही हम कर सकते हैं ।

(4) संत बालीनाथ जयंती: विचार गोष्ठी का आयोजन

अकादमी के तत्वावधान में 31 दिसम्बर, 2015 को संत शिरोमणी महर्षि बालीनाथ जयंती प्रसंग पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्यअतिथि के रूप बोलते हुवे श्री ओ.पी. विश्वप्रेमी, समाजसेवी, उज्जैन ने कहाकि संत बालीनाथ जी जहाँ कही भी जाते थे वे वहाँ सदगुण तथा सदाचार के नियमों का उपदेश करते थे । वह कहते थे कि सद्गुण विहीन व्यक्ति किसी काम का नहीं है यदि प्रयत्न किया जावे तो प्रत्येक व्यक्ति श्रेष्ठ हो सकता है । किन्तु सद्गुण सम्पन्न होकर श्रेष्ठ व्यक्ति बनने के लिये ज्ञान का होना परमावश्यक है । वह कहते थे कि एक ही पुण्य है और वह है ज्ञान ।

(5) राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन

मध्यप्रदेश दलित साहित्य अकादमी द्वारा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नईदिल्ली के वित्तीय सहयोग से द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन उज्जैन में दिनांक 14-15 फरवर्री, 2016 को  सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी का मुख्य विषय था – डॉ. अम्बेडकर तथा जातिविहीन समतामूलक समाज: चुनौतियाँ  एवं समाधान । संगोष्ठी में देश-प्रदेश से पधारे विद्वानों, शोधार्थियों एवं प्रतिभागियों ने विषयान्तर्गत अपने शोध आलेख एवं सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये। शुभारम्भ एवं समापन सत्रों के अतिरिक्त दो विचार सत्रों में संगोष्ठी सम्पन्न हुई।

संगोष्ठी शुभारम्भ सत्र में मुख्य अतिथि के रूप बोलते हुवे डॉ.ईश्वरसिंह चैहान, पूर्व कुलपति- बरकतुल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल एव पूर्व उच्चायुक्त फिजी ने कहाकि अतीत में जो समाज ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्म, साहित्य, कला, कौषल, समृद्धि तथा शौर्य के लिये विष्व पुरोधा था, कांलांतर मे इसका पराभाव और पतन क्यों हुआ ? इस सवाल की गहराई में जाने से प्रतीत होता है कि भारत की सामाजिक ढांचे में जाति व्यवस्था की जड़ता के कारण हजारों वर्ष तक योग्यता को एक छोटे समूह  लगभग 20 प्रतिशत में  छेंककर रखा गया ।  देश की लगभग 80 प्रतिशत आबादी को हर तरह से अधिकार विहीन और ज्ञान अर्जन तथा विवेक प्रदर्षन से प्रतिबंधित रखा। दुर्भाग्यवश जिन समूह को योग्यता हासिल करने का अपार अवसर मिला उन्होंने आपनी योग्यता सिर्फ स्वार्थ साधन मे लगाया। नतीजतन न केवल वे जिन्हें योग्य होने से वंचित रखा गया । बल्कि वह समूह भी जिन्होनंे  योग्यता हासिल करने का एकाधिकार हासिल किया, वास्तव में अयोग्य बनाता गया।  इन वजहों से भारत में नये ज्ञान-विज्ञान का विकास संभव नही हुआ राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता डाॅ. धूपनाथ प्रसाद प्राध्यापक- महात्मागांधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय,   वर्धा (महाराष्ट्र) ने की उन्होंने कहाकि भारतीय समाज में सदियों से व्याप्त सामाजिक विषमता को समाप्त कर जातिविहीन सामाजिक समता की स्थापना के लिये अनेक संतो, मनीषियों, समाज सुधारको, प्रबुद्धजनों आदि  द्वारा प्रयास भी किया जाता रहा है। भक्तिकाल में संतो ने हिन्दू समाज में व्याप्त  जात-पात और ऊंच-नीच का विरोध करते हुये समाज की आंतरिक विसंगतियों को उजागर किया है।

संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन डॉ.अरूण कुमार प्राध्यापक, शासकीय तिलक महाविद्यालय, कटनी ने करते हुवे भारतीय समाज के इतिहास का सूक्ष्म एवं विषद अवलोकन से स्पष्ट होता है कि समाज में सदियों से व्याप्त  विषमता को समाप्त कर  जातिविहीन  समतामूलक समाज की  स्थापना  के लिये  जितना गहन चिंतन एवं प्रयास  डॉ. अम्बेडकर का रहा है उतना शायद ही किसी अन्य दार्षनिकों एवं चिन्तकों का रहा हो। डॉ. अम्बेडकर के चिन्तन का किरण बन्दु जातिविहीन  समतामूलक  समाज की स्थापना है। इन्होंने  सैद्धांितक (संवैधानिक) एवं व्यवहारिक दोनो रूपों में जाति विहीन  समतामूलक समाज की स्थापना के लिये सोचा एवं प्रयास भी किये।  यह उनका भारतीय समाज के लिए अतुल्य एवं अमूल्य योगदान है।

विशेष अतिथि माननीय डॉ. शैलेन्द्र पाराशर, अध्यक्ष-डॉ.अम्बेडकर पीठ, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय कर्णधारों, मनीषियों एवं संविधान शिल्पी ने प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक विषमता एवं भेदभाव को समाप्त कर सामाजिक समरस्ता के लिये एक ओर संविधान में अनेक प्रावधानों का समावेश किया तो दूसरी ओर योजनाबद्ध नीति से सामाजिक, आर्थिक विकास सम्बन्धी कार्यक्रम आरंभ किये गये। जिसके फलस्वरूप भारत में जातिविहीन समतामूल समाज की रचना का स्वप्न संजोया ।

प्रारम्भ में अतिथियों ने दीप-प्रज्जवलन् किया तथा बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी  के चित्र पर पुष्पांजली अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। तत्पश्चात् अकादमी अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन धवन, सचिव श्री पी. सी. बैरवा, कोषाध्यक्ष डॉ. जी.एस. धवन, सदस्य डॉ. एच.एम. बरूआ, डॉ.आर.के. अहिरवार, ने आगंतुक अतिथियों का पुष्पमालाओं से स्वागत किया। स्वागत भाषण देते हुए अकादमी अध्यक्ष डॉ.हरिमोहन धावन ने अकादमी की गतिविधियों पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला और संगोष्ठी विषय पर बोतले हुए कहाकि विकास, उन्नति, प्रगति एवं शीर्ष की ओर सभी आगे बढ़े तभी समाज-देश में समरसता का वातावरण बन सकेगा । विकास के लिए जरूरी है कि भेदभाव, अस्पृश्यता, वर्गवाद को खत्म किया जाये । सामप्रदायिकता, जातियता, क्षेत्रीयता, मजहब, धार्मिक उन्माद का अन्त किया जाये । कार्यक्रम का संचालन अकादमी सचिव श्री पी.सी. बैरवा ने किया तथा आभार अकादमी कोषाध्यक्ष  डॉ. जी. एस. धवन ने माना ।

प्रथम विचार सत्र की अध्यक्षता करते हुवे डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के विभागाध्यक्ष डॉ. दिवाकर शर्मा ने कहा कि डॉ.अम्बेडकर अहिंसा को सभ्य समाज का आदर्श सिद्धांत मानते हैं, मगर न्याय की रक्षा के लिए आवश्यक हिंसा को भी उचित ठहराते हैं अतः शांतिपूर्ण समरस समाज के लिए न्याय की रक्षा आवश्यक है । और शांति जो न्याय पर आधारित हो, अर्थात जब तक दुनिया में न्याय के प्रति सम्मान नहीं होता, तब तक किसी प्रकार की शांति संभव नहीं हो सकती । वस्तुतः समरस या जातिविजीन समतामूलक समाज की अवधारणा और स्थापना हेतु भारतीय वैश्विक चिंतक डा. भीमराव अम्बेडकर का अवदान अक्षुण्ण है, जरूरत है इसे व्यावहारिक बनाने की ताकि समता मूलक समाज की संकल्पना साकार हो सके । सह-अध्यक्षता करते हुवे डॉ. प्रमोद कुमार मेहरा, प्राध्यापक-इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय खुला विष्वविद्यालय, नईदिल्ली ने कहाकि जातिविहीन समतामूलक समाज एक ऐसी अवधारणा है जिसके अन्तर्गत समाज में विभिन्न वर्गों, समूहों, समुदायों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए उनके बीच प्रतियोगिता को भौतिक एवं अमौलिक मानते  हुए सामाजिक संघर्ष को कम करने पर बल दिया जाता है।

व्दितीय तकनिकी सत्र की अध्यक्षता करते हुवे डॉ.व्ही. एस. विभूति प्राध्यापक-राजनीति विज्ञान, पण्डित बालकृष्ण शर्मा शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, शाजापुर ने अपने उद्बोधन में कहाकि बाबासाहेब का विचार समाज हित के प्रति उदार था। उनका चिंतन मूलतः मानव धर्म से प्रेरित है जो मनुष्य को देव धर्म से भी उच्च स्तर पर रखता हंे । उनके विचार का केन्द्र बिन्दु मानव हंे जो सदैव मानव के ही इर्द-गिर्द घूमता रहता हंे । उनका सारा जीवन मानवाधिकारों के प्रति समर्पित और चिन्तन पूर्णतः मानवीय मूल्यों पर आधारित रहा । उन्होंने जनसमुदाय में विकास के बीज अंकुरित किये एवं बेहतर ढंग से जीने का मार्ग दिखाया ।

संगोष्ठी समापन सत्र के मुख्यअतिथि डॉ. प्रेमलता चुटैल, विभागाध्यक्ष-हिन्दी अध्ययनषाला, विक्रम विष्वविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि डॉ. भीमराव अम्बेडकर में साहस, दृढ़ता, त्याग, उग्रता और आत्मविष्वास की स्पष्ट झलक मिलती हंे । वे आत्मसम्मान को मानव जीवन का प्रमुख लक्ष्य मानते थे और उसके समक्ष विष्व के समस्त भौतिक सुखों को तुच्छ मानते थे । उनका संदेष था कि अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करने के लिये तब तक अनवरत संघर्ष करते रहो जब तक अन्तिम सांस भी अवषेष हंै । समतामूलक समाज के प्रबल समर्थक डॉ.अम्बेडकर ने दलितों की मूलभूत सामाजिक समस्याओं को विष्व स्तर पर उजागर करने हेतु महाराष्ट्र में दो बड़े सत्याग्रहों का सफल नेतृत्व किया था । पहला महाड़ के चैबदार तालाब का पानी पीने के दलितों के मानवीय अधिकार और दूसरा सत्याग्रह नासिक के कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेष के अधिकार के लिये किया था ।

समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुवे डॉ. रमाकुमारी पांचाल वरिष्ठ दलित साहित्यकार एवं सम्पादक- विरोचिका, इन्दौर ने कहाकि डॉ. अम्बेडकर अपनी षिक्षा के बल पर किसी भी उच्चतम पद पर आसीन हो सपरिवार भौतिक सुख सुविधाओं का लाभ उठा सकते थे लेकिन वह अपने जीवन के उस अपमान, घृणा और तिरस्कार को नहीं भुला पा रहे थे, जो दलित परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें भोगने पड़े थे । वर्ण-व्यवस्था और जातिप्रथा उनकी प्रगति में सदैव बाधक रही । वह भारत में अन्याय और विषमता रहित ऐसे नवीन समाज की स्थापना चाहते थे जो स्वतंत्रता, समानता और बन्धुता पर आधारित समतामूलक हो जिसमें देष के समस्त नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के एक साथ आगे बढ़ने का समान अवसर प्राप्त हो सके ।

विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुवे डॉ. दीपिका गुप्ता  आचार्य- राजनीतिषास्त्र अध्ययनषाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि वर्ण, जाति, धर्म, लिंग, वर्ग एवं राष्ट्र से परे सब मानवों में एक सामान्य विषेषता हं। मानव सामाजिक के साथ-साथ बौद्धिक प्राणी भी हं। यह एक ऐतिहासिक तथ्य हंे कि जहां अन्याय एवं अत्याचार को जो सहता हं वहां पर सामाजिक उपद्रव होते रहते हैं । डॉ.अम्बेडकर ने भी कहा हं कि ‘‘यदि आर्थिक समानता नहीं लाई गई, तो जनतांत्रिक व्यवस्था भी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाऐगी।


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