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Annual Report 2014-15

प्रतिवेदन वर्ष 2014-15

अकादमी द्वारा अपने संस्थापन उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त निर्धारित कार्य योजना के अनुसार वर्ष  2014-15  में सम्पन्न की गई गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ निम्नानुसार उल्लेखनीय है :

  • ग्रन्थालय एवं प्रलेखन केन्द्र का संचालन

ग्रन्थालय – अकादमी द्वारा संचालित ग्रन्थालय के अन्तर्गतगत वर्ष 2015 तक 3670 पुस्तकें संग्रहित हो चुकी है जो कि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।

पत्र-पत्रिकाऐं – अकादमी वाचनालय/रिडिंग रूम के अन्तर्गत वर्ष 2014-15 में  नियमित रूप से 26 पत्र-पत्रिकाऐं उपलब्ध करवाई गई । जिसमें प्रमुख रूप से शोध पत्रिकाऐं डॉ॰ अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान शोध पत्रिका हिन्दी व अंग्रेजी संस्करण, महू (म.प्र.), ‘‘मध्यप्रदेश जर्नल आॅफ सोशल सांइन्सेज, उज्जैन, त्रैमासिक जर्नल ‘‘शोध-समवेत’’ उज्जैन, समाज विज्ञान त्रैमासिक जर्नल ‘‘सामाजिक सहयोग’’, उज्जैन, ‘मध्यप्रदेश सामाजिक विज्ञान अनुसंधान जर्नल, उज्जैन),‘‘चैमासा” भोपाल, ‘‘मेकल मीमांसा” राष्ट्रीय इन्दिरा गांधी अनुसूचित जनजाति विश्वविद्यालय, अनुपपुर, अमरकंटक, ’’कृतिका’’उत्तरप्रदेश, दलित साहित्य व संस्कृति की पत्रिका ’’दलित साहित्य वार्षिकी’’ नईदिल्ली, दलित  चेतना साहित्य पत्रिका ‘‘युद्धरत आम आदमी’’, हजारी बाग (बिहार) ‘‘बयान’’ नईदिल्ली तथा अन्य विशिष्ट पत्रिकाऐं जनचेतना हिन्दी मासिक ‘‘सामाजिक न्याय सन्देश’’ नईदिल्ली, ‘‘संचेतना’’नईदिल्ली, ‘‘अम्बेडकर मिशन पत्रिका’’पटना, ‘‘‘आश्वस्त’’ उज्जैन, ‘अम्बेडकर वाणी’’ इन्दौर, जनचेतना का प्रगतिशील कथा मासिक ‘‘हंस’’ नईदिल्ली, ‘‘कान्ति’’ नईदिल्ली, ‘‘दलित बंसत’’ शिवपुरी, ‘‘नईचर्चा अम्बेडकर युग’’ भोपाल, ‘‘विप्र पंचायत’’नीमच, ‘‘स्ट्रगल आॅफ दी पिपल’’ भोपाल, ‘‘आज तक’’ उज्जैन, साप्ताहिक पत्रिका ‘‘आउट लुक’’ नईदिल्ली, ‘‘सरस सलिला’’ नईदिल्ली,  आदि सम्मिलित है । इसके साथ ही हिन्दी मासिक/पाक्षिक/साप्ताहिक/दैनिक समाचार पत्रों में प्रमुख रूप से ‘‘अनोखा विशवास’’ इन्दौर,‘‘हिमायती’’ नईदिल्ली, ‘‘इकजय’’उज्जैन, ‘‘नागसेन’’चन्द्रपुर, ‘‘समता’’ अल्मोडा,  ‘‘डॉ॰ अम्बेडकर और बहुजन’’श्रीगंगानगर, ‘‘अंजाने सपने’’ इन्दौर, ‘‘आज का दलित’’ दिल्ली, ‘‘कान्ति’’ नईदिल्ली, ‘‘बैरवा युग ’’ जयपुर, ‘‘सेतु संकल्प’’ इन्दौर, ‘‘राजा बलि समाज’’, इन्दौर, ‘‘सेवादर्पण’’ इन्दौर, ‘‘दैनिक भास्कर’’ उज्जैन, ‘‘‘नईदुनिया’’ इन्दौर सम्मिलित है। उपलब्ध ग्रन्थो, पत्र-पत्रिकाओं, सन्दर्भ सामग्री एवं सुविधाओं का देश-प्रदेश के विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध एवं स्थानीय शोधार्थियों/लेखकों एवं सुधी पाठकों ने लाभ प्राप्त किया है।

प्रलेखन – पत्र-पत्रिकाओं, जर्नल्स तथा शासकीय योजनाओं/सूचना स्रोतों से अनुसूचित जाति, जनजाति एवं समाज के कमजोर वर्गों के विकास/उन्नयन संबंधी आलेख, समाचार, अध्ययन निष्कर्ष, सर्वेक्षण रपट आदि वर्गीकृत जानकारी का प्रलेखन/दस्तावेजीकरण किया गया है ।

  • शोध पत्रिका (जर्नल) का प्रकाशन

वर्ष 2014-2015 में अकादमी की त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘‘पूर्वदेवा’’ के अंक 77-78 एवं 79-80 का नियमित सम्पादन / प्रकाशन किया गया है । ‘‘पूर्वदेवा’’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक डॉ. हरिमोहन धवन एवं प्रकाशक श्री पी. सी. बैरवा है। यह उल्लेखनीय है कि पूर्वदेवा पत्रिका का सम्पादन एवं प्रकाशन पूर्णतः अवैतनिक एवं अव्यावसायिक है ।

  • सामाजिक विज्ञान शोध केन्द्र का संचालन

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से अकादमी को सामाजिक विज्ञान शोध केन्द्र के रूप में समाजशास्त्र एवं इतिहास विषय में मान्यता/सम्बद्धता प्राप्त है । शोध केन्द में आवश्यक शोध सुविधाऐं प्रदान की जाकर शोधार्थियों को संकाय सदस्यों द्वारा सतत् मार्गदर्शन प्रदान किया गया  है । वर्ष में सामाजिक विज्ञान संकाय के अन्तर्गत समाजशास्त्र विषय में पी.एच.डी. उपाधि/शोध कार्य हेतु कई विषयों पर शोधार्थी के रूप में पंजीयन कराया गया है ।

  • संकाय- शोध केन्द्र संकाय सदस्य

(1) डॉ॰ जे.एन. दुबे, शोध निदेशक–इतिहास, (2) डॉ॰ एन.एल.शर्मा, शोध निदेशक – समाजशास्त्र,    (3) डॉ॰ एच.एम. बरूआ, शोध निदेशक –समाजशास्त्र , (4) डॉ. पी. सी. करोड़े, शोध निदेशक–समाजशास्त्र , (6) डॉ.राजेश ललावत‚ सहा॰ शोध निदेशक–राजनीति शास्त्र (7) डॉ. दत्तास्त्रय पालीवाल‚  सहा॰शोध निदेशक–समाजशास्त्र  मानद् रूप से कार्यरत् है। जिनके नेतृत्व में शोध केन्द्र की गतिविधियाँ संचालित है।

  • राष्ट्रीय संगोष्ठी/जयन्ती-काव्यगोष्ठी/परिचर्चा/विशिष्ट व्याख्यान आयोजन

(1)  डॉ. अम्बेडकर जयन्ती पर विचार गोष्ठी का आयोजन

14 अप्रेल, 2014 को डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर जयन्ती दिवस पर स्थानीय टावर चैक पर स्थित डॉ.अम्बेडकर प्रतिमा पर पुष्पांजली अर्पित की गइर्, तत्पश्चात अकादमी सभाकक्ष में आयोजित विचार गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए डॉ.रामकुमार अहिरवार, आचार्य, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहा कि जैसे-जैसे दलित आन्दोलन गति पकड़ रहा है, दलित चेतना के संबंध में कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठ रहे हैं । जैसे क्या दलित आन्दोलन डॉ. अम्बेडकर के विचार-चिंतन का पूरी तरह वाहक है और उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप आगे बढ़ रहा है या वह किसी और दिशा में जा रहा है । ग्रामीण और नगरीय दलितों की चेतना में साम्य है या उसमें कहीं कोई भेद है । कुल मिलाकर, दलित चेतना का अजा क्या स्वरूप है और दलितों के सर्वांगीण विकास के हितार्थ वह कितना सफल है । इन सब प्रश्नों की पृष्ठभूमि में दलित चेतना के विभिन्न आयामों पर गम्भीर चिंतन की आज आवश्यकता है ।

इस अवसर पर अकादमी अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन धवन ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर अपने कठिन परिश्रम और लगन से एक महान व्यक्ति के रूप में भारत में उभरे वे पूर्णतः राष्ट्रभक्त थे उनका विश्वास भारत के लोकतंत्र में था, वे सम्पूर्ण समाज में समता-समानता और बन्धुत्व लाना चाहते थे । संविधान का निर्माण कर आपने दलितों-आदिवासियों तथा पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिये महानतम् कार्य किया। अकादमी सचिव श्री पी. सी. बैरवा  ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर ने अपना सारा जीवन दलित-शोषित-पीड़ितों के उत्थान में बितया वे समाज में व्याप्त ऊॅंच-नींच, भेद-भाव को समूल नष्ट कर सामजिक समरसता को स्थापित करना चाहते थे।

(2) संत कबीर जयन्ती: काव्यगोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन

23 जून, 2014 को संत कबीर जयन्ती दिवस पर डॉ. एच.एम. बरूआ  पूर्व आचार्य, शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि महात्मा कबीर मध्यकालीन भारतीय इतिहास के शिखर पुरूष, संत, कवि और वैचारिक क्रांति के अगुआ थे । उन्होंने धार्मिक, रूढ़ियों, सामाजिक विषमताओं, कट्टरताओं और संकुचित विचारों का विरोध किया । उनका विद्रोही स्वर उनकी रचनाओं में उभरा और वे धार्मिक-सामाजिक बराबरी, सामाजिक एकता की बात जो कबीर कह गए है वह आज भी प्रासंगिक है । अकादमी सचिव श्री पी. सी. बैरवा  ने प्रतिपादि किया कि ‘‘कबीर की गणना निस्सन्देह भारत के महान से महान तत्वदर्शियों, धर्माचार्यों और समाज सुधारकों में की जानी चाहिए । कबीर एक अत्यन्त स्वतंत्र विचारों के महापुरूष थे । वे मत-मतान्तरों के भेद और हर तरह के कर्मकाण्ड और रूढ़ियों के कट्टर विरोधी थे

(3) महात्मा गांधी जयंती: विचार गोष्ठी का आयोजन

2 अक्टूबर, 2014 को गांधी जयंती के अवसर पर डॉ. डी.डी. बेदिया  अध्यक्ष-पण्डित जवाहरलाल नेहरू व्यावसायिक प्रबन्ध संस्थान, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि वस्तुतः गाँधी जी का विश्वास सैद्धान्तिक बहस के स्थान पर कार्य करने में रहा था । गाँधी जी की कार्यशैली में कल्पना, चिन्तन, योजना कार्यान्वयन, समीक्षा, गतिशीलता और साधन की शुद्धता इन सभी तत्वों का समन्वय था । जनता की शक्ति में गाँधी जी को अटूट विश्वास था और वे मानते थे कि कोई भी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं होगा जब तक उसमें जनता की भागीदारी न हो । उनका प्रयास एक तरफ तो था कि भारत में ऐसा वर्गहीन समाज बने जिसमें ऊँच-नीच का भेदभाव न हो और दूसरी ओर उनका सुझाव था कि शांतिपूर्ण आर्थिक क्रांति के लिए ट्रस्टशीप की अवधारणा को कार्यरूप दिया जाए।

(4) संत बालीनाथ जयंती: विचार गोष्ठी का आयोजन

अकादमी के तत्वावधान में 31 दिसम्बर, 2014 को संत शिरोमणी महर्षि बालीनाथ जयंती प्रसंग पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्यअतिथि के रूप बोलते हुवे डाॅ. लक्ष्मीनारायण जाटवा, पूर्व प्राचार्य-डिफेन्स अकादमी, पूना ने कहाकि मानवीय संवेदना, मानव एकता, सम्प्रदाय, सद्भावना, सत्यनिष्ठा तथा अहिंसात्मक प्रतिरोध जैसी भावना ही व्यक्ति में सात्विक गुणें का विकास करती है । उन्होंने शुद्ध आहार पर जोर दते हुए कहाकि व्यक्ति के खान-पान से उसके विचार प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते है अगर शुद्ध आहार करेगा तो वह अवश्यक ही शुभ कार्य और सद्विचारों की ओर बढ़ेगा । इसलिए मनुष्य को दुव्र्यसनों से दूर रहना चाहिए । पास्परिक सौहार्द बनाये हुए किसी व्यक्ति को अस्पृश्य नहीं समझना चाहिए ।

(5) राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन

मध्यप्रदेश दलित साहित्य अकादमी द्वारा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नईदिल्ली के वित्तीय सहयोग से द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन उज्जैन में दिनांक 1-2 मार्च, 2015 को  सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी का मुख्य विषय था – भारत में सामाजिक समरसता उत्पन्न चुनौतियाँ और समाधान । संगोष्ठी में देश-प्रदेश से पधारे विद्वानों, शोधार्थियों एवं प्रतिभागियों ने विषयान्तर्गत अपने शोध आलेख एवं सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये। शुभारम्भ एवं समापन सत्रों के अतिरिक्त दो विचार सत्रों में संगोष्ठी सम्पन्न हुई।

संगोष्ठी शुभारम्भ सत्र में मुख्य अतिथि के रूप बोलते हुवे उज्जैन-आलोट के सांसद डाॅ. चिन्तामणि मालवीय ने कहाकि भारतीय समाज अनेक धर्मों-सम्प्रदायों, वर्ण-जातियों, भाषाओं, संस्कृतियों आदि अन्य मत-मतान्तरों से ग्रसित समाज है । इसीलिए इन विविधताओं से परिपूर्ण समाज को हम भारत को एक ’अनेकता में एकता‘ का देश स्थापित करने का सुखद स्वप्न संजोकर चलते आये हैं । परन्तु अक्सर धार्मिक उन्माद, जातीय भेद-भाव से उत्पन्न हिंसा एवं दंगो की त्रासदी से भारतीय जनमानस विचलित हो उठता है और देश की शांति, एकता एवं अखण्डता के समक्ष गम्भीर चुनौति उत्पन्न हो जाती है । भारत की समग्र सामाजिक एकता व समरसता के मार्ग में धार्मिक विविधता एवं जातीय संस्तरण व असमानता एक बड़ी बाधा के रूप में अवरोध उत्पन्न करने वाली चुनौती है ।

समारोह की अध्यक्षता तराना के विधायक श्री अनिल फिरोजिया ने की उन्होंने कहाकि भारतीय समाज पुरातनकाल का समाज है कुछ बातें विपरीत होने के बावजूद हमारी यात्रा निरन्तर चलती रही है, मिटती नहीं है हस्ती हमारी काल की विसंगती के लिए एक न एक संत उठता है और समाधान निकालता है । बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ऐसे ही संत थे जिन्होंने भारतीय समाज को दशा और दिशा प्रदान की । कानून से नहीं चिन्तन से समाज में बदलाव आयेगा । सर्वाधिक युवाओं वाले वर्तमान समाज में हम इस पर अवश्य चिन्तन करेंगें ।

विशेष अतिथि माननीय श्री अश्वनी कुमार, रिसर्च असि. भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नईदिल्ली  ने कहाकि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय कर्णधारों, मनीषियों एवं संविधान शिल्पी ने प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक विषमता एवं भेदभाव को समाप्त कर सामाजिक समरस्ता के लिये एक ओर संविधान में अनेक प्रावधानों का समावेश किया तो दूसरी ओर योजनाबद्ध नीति से सामाजिक, आर्थिक विकास सम्बन्धी कार्यक्रम आरंभ किये गये।

संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन डॉ. अरूण कुमार प्रभारी प्राचार्य, शासकीय विजयराघवगढ महाविद्यालय, कटनी ने करते हुवे भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह स्पष्ट किया गया कि संविधान का मूल उद्देश्य अपने सभी नागरिकों के लिये सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय तथा विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता तथा प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता तथा व्यक्ति की गरिमा व राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता का विकास करना है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि संविधान में न्याय, समानता एवं भ्रातृत्व पर अत्यधिक बल दिया गया है। साथ ही सामाजिक एवं आर्थिक न्याय को राजनैतिक न्याय की तुलना में प्राथमिकता दी गई है। अर्थात सामाजिक समरस्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान किया गया है। प्रारम्भ में अतिथियों ने दीप-प्रज्जवलन् किया तथा बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी  के चित्र पर पुष्पांजली अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। तत्पश्चात् अकादमी अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन धावन, सचिव श्री पी. सी. बैरवा, कोषाध्यक्ष डॉ. जी.एस. धवन, सदस्य  डॉ.एच.एम. बरूआ, डॉ.आर.के. अहिरवार, ने आगंतुक अतिथियों का पुष्पमालाओं से स्वागत किया। स्वागत भाषण देते हुए अकादमी अध्यक्ष डॉ. हरिमोहन धावन ने अकादमी की गतिविधियों पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला और संगोष्ठी विषय पर बोतले हुए कहाकि विकास, उन्नति, प्रगति एवं शीर्ष की ओर सभी आगे बढ़े तभी समाज-देश में समरसता का वातावरण बन सकेगा। विकास के लिए जरूरी है कि भेदभाव, अस्पृश्यता, वर्गवाद को खत्म किया जाये। सामप्रदायिकता, जातियता, क्षेत्रीयता, मजहब, धार्मिक उन्माद का अन्त किया जाये ।

प्रथम विचार सत्र की अध्यक्षता करते हुवे विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पण्डित जवाहरलाल नेहरू व्यावसायिक प्रबन्धन संस्थान के अध्यक्ष डॉ. डी. डी. बेदिया ने कहाकि प्राचीन काल से अर्वाचीन काल तक भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर दृष्टिपात करने से यह दृष्टिगोचर होता है कि लगभग प्रत्येक काल में सामाजिक विषमता, भेदभाव, जात-पाँत विद्यमान रही है। प्राचीन चिन्तन वस्तुतः सम्प्रभु-वर्गीय चिन्तन था, जिसकी दो मुख्य परिकल्पनायें थी। एक तो यह कि सामाजिक संस्तरण ईश्वरीय विधान पर आधारित है और दूसरी यह कि विलक्षण व्यक्ति विलक्षण व्यक्तियों के घर ही पैदा होते हैं।  सह-अध्यक्षता करते हुवे डॉ. वन्दना मालवीय, प्राचार्य-शासकीय कालिदास कन्या महाविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि सामाजिक समरसता एक ऐसी अवधारणा है जिसके अन्तर्गत समाज में विभिन्न वर्गों, समूहों, समुदायों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए उनके बीच प्रतियोगिता को भौतिक एवं अमौलिक मानते हुए सामाजिक संघर्ष को कम करने पर बल दिया जाता है ।

व्दितीय तकनिकी सत्र की अध्यक्षता करते हुवे डॉ. आर. सी. सिसौदिया  पूर्व सम्भागीय रोजगार अधिकारी, उज्जैन ने अपने उद्बोधन में कहाकि सामाजिक समरसता का वर्तमान परिदृश्य चुनौतिया और समाधान करने के पूर्व हमें यह समझना अति आवश्यक है कि समरसता क्या चीज है? यह दो शब्दों से बना है। सम याने बराबर और रसता, याने आनन्दता से भरपूर। सामाजिक न्याय और समरता की धारणा निश्चित ही सापेक्ष है और उसका सीधा सम्बन्ध मानव समाज से विशेषकर निर्बल, निर्धन, उपेक्षित एवं पददलित, पीड़ित और शोषित, असहाय और विकलांग लोगों से है । संगोष्ठी समापन सत्र के मुख्यअतिथि महामण्लेश्वर स्वामी रामकृष्णदास, उज्जैन ने कहाकि स्वामी विवेकानन्द ने मानवीय मूल्यों की व्याख्या करते हुवे कहा था कि भारतीय नागरिक तेजस्वी, श्रीसम्पन्न और पूर्ण प्रमाणिक बने । मेरी आशा है कि वे सच्ची शिक्षा प्राप्त कर, चरित्र निर्माण कर अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करें जिससे व्यक्ति में योग्य कर्म करने की आकांक्षा एवं उसको कुशलतापूर्वक करने की पात्रता का विकास हो जिससे समाज में समरसता कायम हो । अतः सामाजिक समरसता के लिए नागरिक को शिक्षित होना जरूरी है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुवे डॉ.अम्बेडकर पीठ, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के अध्यक्ष डॉ.शैलेन्द्र पाराशर  ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, और यह धर्मनिरपेक्षता ही हमारे राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत है । हमारा संविधान भी हमें इस बात की स्वतंत्रता प्रदान करता है, और सभी धर्मो का पालन एवं पोषण करने का हर व्यक्ति को अधिकार देता है । यह विशेषता सिर्फ हमारे भारतीय संविधान की है । दुनिया का कोई भी  संविधान इस तरह की विशेषता से परिपूर्ण नहीं है । धर्मनिरपेक्षता की नीवं पर ही सामाजिक समरसता निर्भर करती है । सामाजिक समरसता की व्यवस्था हमारे सामाजिक जीवन को हर तरह से प्रभावित करती है । विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुवे डॉ.तपन चैर  विभागाध्यक्ष-अर्थशास्त्र, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहाकि भारत में सामाजिक समरसता पूर्णरूप से स्थापित करने के लिये स्वंय को मेहनत करना होगी । भारतीय समाज में समरसता का अभाव जो पाया जाता है वह है जाति आधारित, लिंग आधारित एवं आर्थिक आधार पर । सरकार द्वारा आर्थिक वितरण समान रूप से होना चाहिये । समाज के अंतिम व्यक्ति तक आर्थिक लाभ पहुँना चाहिए । यदि वितरण समान नहीं होगा तो असमानता बनी रहेगी। अन्त में सभी के प्रति आभार अकादमी अध्यक्ष ने माना।


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